हमारे समाज में चैत्र मास शुक्ल पक्ष नवरात्री की तृतीया के दिन गणगौर पर्व के रूप में मनाया जाता है यह पर्व विशेष तौर पर केवल स्त्रियों के लिए ही होता है इसे कुवारी कन्या भी कर सकती है गण को शिव तथा गौर को माता पार्वती का रूप माना जाता है
गणगौर-पूजन विधि तथा महत्व - Gangaur - Poojan Vidhi Tatha Mahtv
इस दिन भगवान शिव तथा माता गौरी का पूजन किया जाता है ऐसा मान जाता है की पूजन में मां गौरी के दस रुपों की पूजा की जाती है। मां गौरी के दस रुप इस प्रकार है - गौरी, उमा, लतिका, सुभागा, भगमालिनी, मनोकामना, भवानी, कामदा, भोग वर्द्विनी और अम्बिका मां गौरी के सभी रुपों की पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से पूजा की जाती है इसी दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था इस दिन सभी सुहागिनें सुबह नाहाकर श्रंगार करके माता गौरी तथा शंकर जी का पूजा करती है दोपहर तक व्रत रखती हैं। स्त्रियाँ नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं
पूजन विधि
सबसे पहले मिटटी से माता गौरी की एक मूर्ति बनाये जिसे गौर कहा जाता है फिर उसका मिटटी की गौरी को एक पटले पर रखकर श्रंगार तथा उसे एक लाल चुनरी पहनाये गौरी का श्रंगार करने के बाद सभी महिलाए अपना श्रंगार करे एक साडी तथा श्रंगार का समान पूजा में रखे इस दिन मीठे गुना बनाये जाते है माता पार्वती की आराधना करे तथा अपने अखण्ड सौभाग्य की कामना करे तह कथा सुने कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी माँग में लगाये तथा कुँआरी कन्यायें गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद ले तथा अपने लिए सुयोग्य वर की कामना करें सभी विवाहित महिलाए पूजा के बाद साड़ी तथा श्रंगार का सामा अपनी सास या ननद को दें तथा घर के सभी बड़ो से आशीर्वाद ले