माता के लोकगीत - सुरईगाय -Mata Ke Lokgeet- Suraaigaay
कजरी वन से चली सुरई गाय
नंदन वन चरवे चली ओ माय
जय जय नंदन वन चरवे चली ओ माय
ऊँचे से पर्वत सिंह मडराये राखो
वन मेरो किन्ने चरो हो माय
आओ री मेरी गावर माता भख लउ तोय
राखो वन मेरौ तुम चरों हो माँ
जय जय राखो वन मेरौ तुम चरों हो माँ
सुन लेरे मेरे सिंह राजा सुन ले मेरी बात
खिडक बंधो है मेरो बछड़ा हो माय
को तेरे गावर माता होंगे गवाय
तेरी साक भरइये हो माँ
चाँद सूरज मेरे होंगे गवाय
धरती साक भरइये हो माँ
इक वन नाको दूजे वन नाक
तीजे वन खिडक रामाइये
कैसो तो मैया तेरो मैला भेष
कैसे तो अखियन जल भरे हो माँ
और दिना तो मैया आती अबेर,
आज सबेरे कैसी आई हो माँ
आओ रे मेरे बालक बच्चे खेचों मेरो हीर
वचन भरे है राजा सिंह से हो माँ
सुनले मेरी गावर माता सुनले मेरी बात
वचन कौ विद्धो दुद्ध न पियो हो माँ
आगे- आगे बालक पीछे सुरईगाय
सिंह राजा के घर चली हो माँ
ऊँचे से पर्वत सिंह देखे वाट
एक गई दो बहोरी हो माँ
जय जय एक गई दो बहोरी हो माँ
आओ रे सिंह मामा पहले भख मोय जाय
पीछे गावर विनासियें माँ
किनने तो बालक बच्चे दई तोय
कौन गुरुं पर तुम पढ़े हो माय
अलख निरजन दईं सिख मोय
परम गुरुन पर हम पढ़े ओ माँ
आओ री मेरी सिंह रानी पूजे इनके पैर
गरुन ननद बच्चा भांजे हो माँ
सोके के जाके सींग मढ़ाये
रूप गढोना औठो बज खुरी हो माँ
रेशम की जापे झापन डार
पांच रतन जाकी पूंछ पे हो माँ
बारह बारह कोसन बिकट उजार
मन आवे जहाँ तुम चरो हो माँ
चरुआ दूध पालने पूत अलवा दे सो पाइए हो माँ
इक इक बच्चा सबकू देय
बच्चा के पीछे सुरई टार गई ओ माँ
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